महंगाई मार गई

-सुगंधा झा
महंगाई ने एक बार फिर बढ़ना शुरू कर दिया हैं, पेट्रोल, डीजल से लेकर खाद्य पदार्थों की कीमतों में लगातार उछाल से पूरा देश त्रस्त है.

पिछले चार महीनों में ही पेट्रोल की कीमत छः बार बढ़ चुकी है, तीन साल पहले चीनी 15 रूपए किलो मिलती थी आज चालीस के पार मिलती है, जो प्याज़ 20 से 30 रूपए मिलता था आज 80 से 100 रूपए किलो मिलता है. हर तरह से आम आदमी ही त्रस्त होता है.

सरकार और सरकारी कर्मचारियों को तो कोई फर्क नहीं
पड़ता है, क्योंकि देश में महंगाई बढ़ते ही उनका महंगाई भत्ता बढ़ जाता है. बोझ तले तो आम आदमी पीसता है.

महंगाई बढ़ने से उसका पूरा बजट बिगड़ जाता है. देश में महंगाई ने हाहाकार मचा रखा है, आम आदमी का जीवन दूभर है.

सरकार कहती है विकास दर तेज होने से मंहगाई बढ़ती है. बेशुमार कालाधन और चीजों की सीमित उपलब्धता महंगाई का असली कारण है.
विकास दर को दोष देकर सरकार जनता को गुमराह करती हैं. देश की राजनीतिक, प्रशासनिक, न्याय व्यवस्था, पुलिस नव समृद्ध वर्ग और भ्रष्ट राजनीतिज्ञों के नियंत्रण में हैं.

2 जी, सीडब्ल्यूजी, आदर्श, कोलगेट, हेलीकॉप्टर सौदा घोटालों से साबित हो गया है कि यह वर्ग कानून को अपनी जेब में रखता है. दूसरी और गरीब और अमीर के बीच की खाई चौड़ी हो रही है.

इंडिया द्वारा भारत का शोषण हो रहा है. जहां इंडिया अमीर है वही भारत गरीब, भूखा, लाचार, बेरोज़गार और बीमार है.

सरकार की नजर में आम आदमी की अहमियत आम (फल) से ज्यादा कुछ नहीं जिसे चूस कर फेंक दिया जाता है.

बढ़ती महंगाई से इंडिया को फर्क नहीं पड़ता है, बढ़ती महंगाई कालाधन वालों और भ्रष्ट वर्ग के अनुकूल आती है. देश की हालात देख कर तो लगता है कि सरकार के वश में अब कुछ भी नहीं हैं, उसका किसी चीज पर कोई नियंत्रण नहीं रह गया है.

-सुगंधा झा

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