मोदी का राजनैतिक रुतबा बढ़ा, राहुल का दांव पर

हितेंद्र गुप्ता
आम चुनाव से पहले चार राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजों ने नरेंद्र मोदी का कद बढ़ाया है जबकि राहुल गांधी का राजनैतिक रुतबा दांव पर लग गया है.

बीजेपी मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ में लौट आई है जबकि राजस्थान में पार्टी भारी बहुमत से जीत गई है और दिल्ली में भी सरकार बनाने जा रही है.

इस करारी हार से कांग्रेस में हताशा का माहौल है. कांग्रेस दफ्तर में सन्नाटा
छाया हुआ है.

मोदी लहर से मिली जीत के बाद बीजेपी कार्यकर्ताओं में उत्साह का माहौल है. बीजेपी दफ्तर में जश्न का माहौल है और  बीजेपी कार्यकर्ता आतिशबाजी कर एक दूसरे को बधाई दे रहे हैं.

बीजेपी के केंद्रीय नेता इस बात से खुश है कि मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाकर उन्होंने जो दांव खेला था वो खाली नहीं गया.

चुनावों में भ्रष्टाचार, घोटालों और महंगाई से त्रस्त लोगों में कांग्रेस के खिलाफ जबरदस्त गुस्सा दिखा. चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस युवराज मतदाताओं में कोई जोश नहीं पैदा कर पाएं. राहुल लोगों से खुद को जोड़ने में नाकाम रहे.

जबकि बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी केंद्र की यूपीए सरकार से परेशान मतदाताओं की नब्ज पकड़ने में कामयाब रहे. मोदी पूरी ताकत के साथ लोगों को कांग्रेस की नाकामियों को गिनाते रहे और जनता से बदलाव की अपील करते रहे.

चुनाव प्रक्रिया शुरू होने के साथ ही यह माना जा रहा था कि अगर कांग्रेस को जीत मिली तो राहुल गांधी की जीत होगी और अगर बीजेपी जीती तो यह जीत नरेंद्र मोदी की जीत मानी जाएगी.

कांग्रेस अब इन चुनाव नतीजों को नरेंद्र मोदी बनाम राहुल गांधी मुकाबले के रूप में पेश करने से बच रही है. लेकिन लोग नतीजे को मोदी बनाम राहुल की टक्कर के रूप में ही देख रहे हैं और वह मान चुके हैं कि राहुल को इस राजनैतिक लड़ाई में मोदी ने चित कर दिया है.

परिणाम पार्टी के पक्ष में ना आने पर कहा जा रहा है कि राहुल गांधी से आगामी चुनाव की जिम्मेदारी वापस ली जा सकती हैं और सोनिया गांधी सक्रिय भूमिका में आ सकती हैं.

कांग्रेस अध्यक्ष पार्टी संगठन में भारी फेरबदल कर सकती हैं और हार का ठीकरा स्थानीय नेताओं पर फूट सकता हैं.

गुजरात के मुख्यमंत्री को पहले हल्के में लेने वाले कांग्रेसी नेता अब नरेंद्र मोदी का लोहा मानने लगे हैं.

मोदी पर खिलाफ आक्रामक रुख रखने वाले दिग्विजय सिंह ने भी अपना टोन बदल दिया है. दिग्गी राजा भी दबे सुर से मोदी की चुनौती को मान चुके हैं.

इसके पहले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी माना कि वे मोदी को लेकर पूरी तरह से गंभीर हैं और उन्हें हल्के में नहीं लेते.

विधानसभा चुनावों में जीत का फायदा का बीजेपी को यह मिलेगा कि नए दल के साथ कुछ पुराने सहयोगी भी एनडीए में वापस आ सकते हैं जबकि कांग्रेस के सहयोगियों समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का रुख बदल सकता है.

लोकसभा चुनाव 2014 से पहले असम गण परिषद, एआईएडीएमके, डीएमके, बीजेडी, टीआसएस, इंडियन लोकदल और टीडीपी की भी सक्रियता बढ़ सकती है.

इस जीत के साथ ही नरेंद्र मोदी अपना राजनैतिक रुतबा कायम करने में कामयाब रहे हैं जबकि राहुल गांधी के राजनीतिक करियर पर सवालिया निशान लग गया है.



-हितेंद्र गुप्ता




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