जिहाद की आग

आतंकवादियों का ये कैसा है जौहर,
जिसे है निर्दोषों के लहू की प्यास,
कौन बनेगा उन बूढ़े मां-बाप का सहारा,
जिनके बेटों को निगल गया जिहाद तुम्हारा
हंसते-खेलते थे जो बच्चे कल तक,
आज रो रहे हैं मां-बाप के लिए बिलख-बिलख कर
कौन खिलाएगा
उन्हें रोटी, कौन करेगा प्यार,
कौन लगाएगा गले से, कौन करेगा दुलार.

इस जिहाद ने उजाड़ दिया उनका आंगन
जिन आंखों में कभी बसता था सावन.
अब वो केवल शून्य की ओर देखती हैं
ये कैसा जिहाद है बस यही पूछती हैं.
कौन बांधेगा अब भाई की कलाई पे राखी,
किसकी रक्षा का वचन लेगा वो अभागा भाई ,
आतंक जिसकी सूनी कर गया कलाई,
बहुत हुआ अब बन्द करो ये जिहाद की लडाई,
वरना मिट जाएगी मानवता,रह जाएगी सिर्फ तन्हाई.

-आराधना वर्मा