चाहतों का सिलसिला

जिंदगी की राहों में, कई मुकां आते हैं                                           
ख्वाहिशों का दामन पकड़े,
हर इंसा जूझता है
अधूरी चाहते उम्र भर का दर्द दे
जाती है
नहीं खत्म होता,
वज़ूद किसी का हौसलों के टुटने से,
अगर हो राह मे कोई अपना
जो थाम ले हर वक़्त लड़खडाने से,
न टुटने दे कभी जिंदगी के हालातों से,
समझौता करता है वो अपनी चाहतों से,
वक़्त भी क्या अज़ीब खेल खेलता है,
इंसान की चाहतों से,
पल भर में हज़ारों खुशियों से दामन भर देता है
और पल भर में ही ग़मों के सागर से जोड़ देता है
बिखरी जि़ंदगी को समेटने की तमन्ना लिए,

हर रात आंखे भींगती है,
चाहतों का सिलसिला बयां न हो सके,
उम्मीदों को लिए राहों पर चलते रहे,
चलते रहे, वक़्त ऐसा ज़ख्म दे जाता है,
जिसका दर्द तमाम उम्र नही मिटता

- निशा वर्मा
पत्रकार


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