बिटिया बोझ नहीं अभिमान है

रितेश यादव
वर्तमान में दुनियाभर में 25 करोड़ बेटियां ऐसी है जिसकी शादी 15 साल से भी कम उम्र में ही कर दी गयी, वहीं 70 करोड़ से अधिक बेटियां 18 साल से कम उम्र में ब्याही गयी.

युनिसेफ 18 साल से कम उम्र में शादी करने के कार्य को मानव अधिकार के खिलाफ मानता है. हाल ही में युनिसेफ की ओर से जारी सूची के मुताबिक, बाल विवाह के मामले में नेपाल 10वें स्थान पर है तो नाइजर शीर्ष पर जबकि भारत 5वें स्थान पर है लेकिन भारत दुनिया के उन प्रमुख विकासशील देशों में भी
शामिल है जहां सबसे अधिक बाल विवाह होते हैं. 35 फीसदी बाल वधुएं तो अकेले भारत में ही है.

यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि चाहे हम विश्व बिटिया दिवस (23 सितंबर) मना लें या फिर महिला दिवस, हालात में कोई खास सुधार नहीं हो पाता और स्थिति जस की तस बनी रहती है.

यूं तो बाल विवाह की दर में धीरे-धीरे कमी हो रही है. 1961 में यह दर 35 प्रतिशत था और यदि वर्तमान दर जारी रहा तो 2030 तक यह 22 प्रतिशत और 2050 तक घटते-घटते 18 प्रतिशत रह जाएगी. लेकिन ग्रामीण इलाके खासकर गरीब तबकों में बाल विवाह को पूर्ण रूप से रोक पाना बहुत बड़ी चुनौती है. हमेशा जोर दिया जाता रहा है कि यदि बेटियां व उसका परिवार शिक्षित होगा तो बाल विवाह पर अंकुश लगने में मदद मिलेगी लेकिन शिक्षा पर जोर देने के बावजूद अभी भी बाल विवाह की समस्या बरकरार है. 

साक्षरता के लिहाज से देखा जाए तो, भारत में 65.46 प्रतिशत महिलाएं ही पढ़ना और लिखना जानती है वहीं नेपाल में पुरुष साक्षरता दर 75.1 प्रतिशत के मुकाबले महिला साक्षरता दर 57.4 प्रतिशत है. एक ओर जहां भारत में 6.8 प्रतिशत बच्चे स्कूल छोड़ देते हैं तो दूसरी ओर नेपाल में लगभग आधे बच्चे प्राथमिक स्कूल तक भी नहीं पहुंच पाते.

लिंगानुपात की बात करें तो भारत में 1961 में जहां प्रति एक हजार लड़कों के मुकाबले 976 लड़कियां थी वहीं 2011 में प्रति एक हजार लड़कों के मुकाबले 918 लड़कियां रह गयी. जबकि नेपाल में 100 महिलाओं के प्रति पुरुषों की संख्या 94.2 है.

कन्या भ्रूण हत्याओं, बालिकाओं के खिलाफ अन्याय को रोकने और उन्हें एक सशक्त, आदर्श समाज देने के उद्देश्य से कई प्रकार की योजनाएं व कानून क्रियांवित होने के बावजूद बेटियों के खिलाफ गहरा लैंगिक भेदभाव व्याप्त हैं जैसे-जन्म से पहले ही भ्रूण की लिंग जांच कराकर हत्या, जन्म के बाद पालन-पोषण, स्वास्थ्य और पढ़ाई में भेदभाव, बालविवाह एवं अन्य.

भारत में ही हर साल 1.1 करोड़ गर्भ चिकित्सकीय तरीके से खत्म किए जाते हैं. जबकि यहां पर 40 प्रतिशत बेटियों की मृत्यु एनीमिया यानि की खून की कमी की वजह से हो जाती है. दूसरी तरफ, यहां के ग्रामीण इलाकों में 70 प्रतिशत से ज्यादा बच्चे कुपोषण के शिकार होते हैं. युनिसेफ रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 10 लाख बच्चे कुपोषण के कारण मरते हैं जिसमें अधिकतर बेटियां होती है. 

नेपाल के परिदृश्य की बात करें तो यहां की आर्थिक गतिविधियों में 42.07 प्रतिशत योगदान 10-14 साल के लड़के-लड़कियों का होता है जिसमें लगभग 60 प्रतिशत बेटियां होती है. यह विदित है कि घर से लेकर कार्यस्थल तक बेटियों को छेड़छाड़ और शोषण का शिकार होना पड़ता है. बच्चियों, महिलाओं के साथ दुष्कर्म, छेड़छाड़ और छींटाकशी जैसी घटनाएं सबसे ज्यादा घरों में ही होती हैं.

भारत में इन घटनाओं की शिकार 23 प्रतिशत विवाहित महिलाएं होती है जबकि 77 प्रतिशत अविवाहित महिलाओं को इन समस्याओं से दो-चार होना पड़ता है. दुष्कर्म पीडि़त बेटियों एवं महिलाओं को आजीवन गहन मानसिक आघात झेलना पड़ता है जिसमें से कईयों को तो सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ता है. कुछ आत्महत्या के रास्ता को अपना लेती हैं तो कुछ मजबूरीवश वेश्यावृत्ति के धंधे को.

जहां तक बेटियों की सफलता दर की बात करें तो बेटियां अब किसी भी मामले में बेटों से पीछे नहीं है. वह लड़कों के साथ कदम से कदम मिलाकर देश की उन्नति में काम करने की अभिलाषा रखती है इसलिए बेटियां भी बेटों की तरह घर, मां-बाप, भाई-बहन से दूर रहकर शहरों में पढ़ाई व नौकरियां करती है. और सफलता हासिल कर मां-बाप, समाज व देश का नाम रोशन करती है.

यही अभिलाषा लिए आरा, बिहार की निवासी चंदा मिश्रा दिल्ली में करीब दो सालों से अध्ययन के साथ-साथ सीए फर्म गर्ग एंड ब्रदर्स एंड एसोसिएट्स में कार्यरत है और सीए बनने से मात्र एक कदम दूर है. ऐसी लाखों बेटियां है देश-विदेश में अपने लक्ष्य को पाने के लिए संघर्षरत है. देखा जाए तो नौकरी से लेकर संसद तक महिलाओं की मौजूदगी ने यह साबित कर दिया है कि यदि उसे मौका दिया जाए तो बेटियां लोगों की उम्मीदों को धूमिल नहीं होने देगी.

हमें नहीं भूलना कि बिटिया बिना दुनिया की कल्पना नहीं की जा सकती. इसलिए भ्रूण हत्या का डटकर मुकाबला कर बेटियों को जीने का हक देना होगा. बेटियों को उसके हकों को देना न केवल हमारा कर्तव्य है बल्कि उसका अधिकार भी.
बेटियों को सही दिशा व प्रगति में एक दोस्त की भांति पेश होना होगा. समाज में बेटियों के साथ कई सारी ऐसी घटनाएं घटती है जिसे बच्चियां अपने माता-पिता को बताने से संकोच करती है और इसका कारण है माता-पिता के प्रति डर और अव्यवहारिक रिश्ता. ऐसे में प्रत्येक माता-पिता को अपनी बेटियों को एक अलग पहचान देनी होगी ताकि एक स्वच्छंद व भेदभाव रहित समाज की स्थापना हो सके.

दूसरी प्रमुख बात बेटियों के प्रति घर में हो रहे पक्षपात को दूर करना होगा और उन्हें यह समझना होगा कि बेटी है तो कल है. इसलिए बेटियों की सेहत, पोषण व पढ़ाई जैसी चीजों पर ध्यान दिए जाने की खास जरूरत है ताकि वे बड़ी होकर शारीरिक, आर्थिक, मानसिक व भावनात्मक रूप से न सिर्फ सक्षम व आत्मनिर्भर बनें बल्कि आगे चलकर एक बेहतरीन समाज के निर्माण में भी योगदान दे सकें.

-रितेश यादव
पता- ग्राम: अचलपुर, पोस्ट :  बदरबन्ना,
जिला : दरभंगा, बिहार- 847233
संपर्क – (+91)-9871886454



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