इंडियन पॉलिटिक्स विथ सॉरी

अगर आप राजनीति को जरा भी पसंद करते हैं,और राजनेताओं को थोड़ा भी सुनते हैं तो यकिन मानिए आप भी मेरी तरह परेशान होंगे 'सॉरी' से.
सॉरी जी हां यही वो छोटा सा शब्द है, जिससे मैं आजकल परेशान हूं और गुस्से में रहता हूं. परेशान इसलिए क्योंकि आजकल इसकी प्रथा हीं जैसे चल चुकी है और गुस्से में इसलिए क्योंकि गलत जगह इसका उपयोग हो रहा है. ये सारी बातें मैं आपसे यूं हीं नहीं कर रहा
बल्कि इसके पीछे की वजह राजनीति में हो रहा इसका इस्तेमाल है. इस सॉरी का इस्तेमाल ये लोग ब्रहमास्त्र की तरह करेंगे ये किसी ने नहीं सोचा था.


चुनावों में ये प्रचलन और भी तेज हो जाता है अब मैं उन महानुभावों का जिक्र करना चाहूंगा जिसने इसका उपयोग ढाल के रुप में बखूबी किया है. इनमें से पहला नाम मैं नई-नई मंत्री बनायी गई साध्वी निरंजन ज्योति का नाम लुंगा. जिन्होंने न जाने कहां पढ़ा और दुनिया को बता दिया कि हम सभी राम के संतान हैं और जब हंगामा मचा तो संसद में खेद प्रकट कर मामला शांत कराया गया.

बात अगर समाजवादी पार्टी सुप्रीमो मुलायम सिंह के बयान की करें जिसमें उन्होंने बलात्कार जैसे संवेदनशील मुद्दे पर ये कहा था कि भाई लड़के हैं गलती हो जाती है. जब बात मीडिया में आई तो ये कहकर मामले को शांत कराया गया की नेता जी का मतलब वो नहीं था जो दिखाया गया.  अगर इस बात से किसी की भावनाएं आहत हुई तो हम इस पर खेद प्रकट करते हैं.

बीजेपी के गिरीराज सिंह ने मानों पाकिस्तान जाने का फरमान हीं सुना दिया और बाद मे फिर अपनी कही गई बातों को अपने अंदाज में समझा भी दिया. अगर बात विवादास्पद बयानों की कि जाए तो सबसे विवादास्पद बयान कांग्रेस नेता और अभिनेता राज बब्बर का है जिन्होंने न जाने किस चौपाटी पर १२ रु में भरपेट भोजन करने की बात कहकर गरीबों की भावनाओं को आहत किया और जब बात बिगड़ने लगी तो अपने तरकश से सॉरी रुपी ब्रह्मास्त्र चलाकर मानो गरीबों की भावनाओं को आहत करने का जुर्माना भर दिया हो. रील लाईफ के हीरो इस बयान के बाद रीयल लाईफ के हीरो के विलेन बन गए. अब मैं एक दूसरी घटना जो की


उत्तरप्रदेश में एक महिला IAS दुर्गा शक्ति नागपाल के निलम्बन पर वहां के मंत्री नरेन्द्र भाटी का जिक्र करना चाहूंगा जिन्होंने उस महिला IAS के बारे में बड़ा हीं बेहुदा बयान दिया और माफी मांगकर अपनी कही गई आपत्तिजनक भाषा से छुटकारा पाना चाहा.

 मैं ये जानना चाहता हूं कि क्या एक सॉरी कह देने से पिछली कही गई बातों को भुलाया जा सकता है. अगर नेताजी सॉरी रुपी डिटरजैन्ट साथ लेकर चलते हैं तो उन्हें भी कभी धूलना पड़ सकता है.

ये मामला कुछ शांत हुआ ही था कि बिहार के मंत्री भीम सिंह का बड़ा हीं बेहूदा और बेतुका बयान सामने आया जब सरहद पर हमारे पांच जवान शहीद हुए पूरा देश गम में डूबा हुआ था. उनकी चिताओं की आग अभी ठंडी भी नहीं हुई थी कि भीम सिंह ने यह कह दिया कि लोग आर्मी में शहीद होने के लिए हीं जाते हैं.

ये बयान उन्होंने इस निर्भिकता से दिया मानो वो यूनीवर्सल सत्य बता रहे हो और जैसे हीं उन्हे पता चला कि उन्होंने देशवासियों की भावना को ठेस पहुंचाया है तुरन्त उन्होंने सॉरी का मरहम देशवासियों पर उड़ेल दिया.
क्या जिन परिवारों ने अपना बेटा भाई, पति खोया उन्हें मुआवजे के रुप में यहि मिलना था.
क्या सॉरी कहदेने से उनकी यह घटिया सोच बदल सकती है अगर ऐसा नहीं हो सकता है तो आखिरकार कब तक उनकी जूबान यूं हीं फिसलती रहेगी और कब तक हमें सॉरी सुनकर उसे पचाना होगा.

वैसे इन राजनेताओं की फेहरिस्त बड़ी लंबी है जैसे सलमान खुर्शीद, बेनी प्रसाद वर्मा, आजम ख़ान, जीतनमांझी, सुशील कुमार शिन्दे, दिग्विजय सिंह, फारूख अब्दुल्ला जैसे नेताओं ने बखूबी इसे हथियार के रुप में इस्तेमाल किया है और देश की जनता के हाथ लगता है मुझे इस बात का खेद है, ये उनकी व्यक्तिगत राय है, ये पार्टी की राय नहीं है और पार्टी का इससे कोई लेना-देना नहीं जैसे शब्द ये तो तय है कि
यह सिलसिला यहीं रुकने वाला नहीं है. लेकिन देखना दिलचस्प होगा कि ये तमाम नेता सॉरी रुपी कश्ती में सवार होकर अपने आप को डुबने से कब तक बचा सकते हैं.क्योंकि अब राजनीति के साथ जनता भी बदल चुकी है

-समीर कुमार ठाकुर

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