अशांति की आग में झुलस रहा मानव


निर्भय कुमार कर्ण
जगत में ऐसा कोई नहीं जिसे शांति पसंद नहीं हो. प्रत्येक सजीव खुबसूरत जिंदगी को शांति से व्यतीत करने की चाहत रखता है लेकिन हकीकत यही है कि इस आधुनिक दुनिया में हर कोई बेचैन और अशांत है और शांति की जुगत करता रहता है जिसके लिए मानव जीवन का अपना अधिकांश समय न्यौछावर कर देता है.

दूसरी ओर, विश्व में फैली हिंसा और युद्ध की अशांति ने
सबका जीना मुहाल कर रखा है. ऐसे में विश्व शांति दिवस (21 सितंबर) को मनाने की सार्थकता और भी बढ़ जाती है. लेकिन सवाल उठता है कि क्या एक दिन विश्व शांति दिवस मना भर लेने से दुनियाभर में शांति कायम हो जाएगी?

एक-एक व्यक्ति से परिवार, समाज, देश व विश्व का निर्माण होता है. यदि व्यक्ति अशांत है तो विश्व, देश, समाज का क्या एक व्यक्ति तक का विकास संभव नहीं ! आज के ईर्ष्या, तृष्णा, लालच, हैवानियत, स्वार्थ से भरी इस दुनिया में शांति नाम की चीज रही ही नहीं.

अशांति का आलम यह है कि दुनिया में  प्रत्येक 40 सेकेंड में एक व्यक्ति आत्महत्या कर लेता है. डब्ल्यूएचओ की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, वैश्विक स्तर पर 15 से 29 साल के आयु वर्ग के बीच में मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण आत्महत्या है. आत्महत्या की प्रवृत्ति महिलाओं की तुलना में पुरुषों में ज्यादा है. खास तौर पर विकसित देशों में पुरुषों  आत्महत्या दर महिलाओं से तीन गुनी है. मेलबर्न युनिवर्सिटी के विशेषज्ञ टोनी जोरम इस आत्महत्या का कारण रिष्तों में बिखराव और बेरोजगारी को मानते हैं.

सामाजिक हो या वैश्विक स्तर पर लोग अशांत हैं. इसे नियंत्रित करने के लिए ही 1982 से शुरू होकर 2001 तक सितंबर महीने का तीसरा मंगलवार विश्व शांति दिवस के लिए चुना जाता था लेकिन 2002 से इसके लिए 21 सितंबर का दिन घोषित किया गया.

शांति का संदेश दुनिया के कोने-कोने में पहुंचाने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने कला, साहित्य, सिनेमा, संगीत और खेल जगत की विश्व विख्यात हस्तियों को शांतिदूत भी नियुक्त कर रखा है. इसके बावजूद पूरी दुनिया हिंसा और अशांति की आग में झुलस रहा है.

आतंकवाद, नक्सलवाद, उग्रवाद और न जाने ऐसे कितने वाद हैं जो देशों की सुख-चैन को छीन रखा है. इस समय आईएसआईएस का नाम चर्चा जोरों पर है. यह आतंकवादी संगठन तेजी से अपना फन फैलाकर दूसरों पर भारी पड़ रहा है. अफगानिस्तान, ईराक, फिलिस्तीन, इजराइल, ब्लुचिस्तान एवं अन्य जगहों पर अलग-अलग नामों से कई सारे आतंकवादी गुट मौजूद हैं जो वहां के हालात को खराब कर रखा है. इसके अलावा सभी देश अपने ही घरों में असंतुष्ट गुटों, समाज से त्रस्त हैं जो देश को अशांति की आग में झोंके रखता है.

वहीं दूसरी ओर सभी देश किसी न किसी प्रकार अपने आप को इतना उलझा कर रखा हुआ है कि वह चाहकर भी अपने यहां शांति स्थापित नहीं कर सकता. विशेषज्ञों की मानें तो विश्व शांति के लिए सबसे बड़ा खतरा साम्राज्यवाद, आर्थिक और राजनीतिक है. अधिकतर देश विस्तार की नीतियों से ग्रस्त हैं और एक-दूसरे को परास्त करने की मानसिकता को सदियों से ढ़ोता रहता है.

साम्राज्यवाद के जाल से घिरा विकसित देश युद्ध की स्थिति उत्पन्न करते हैं और वहां के संसाधनों का इस्तेमाल कर अपने आपको दुनिया में वर्चस्व कायम करने के लिए संघर्षरत रहता है जैसे कि अमेरिका द्वारा ईरान, इराक, अफगानिस्तान आदि जगहों पर हस्तक्षेप कर युद्ध के हालात पैदा करना. कमोबेश यही हालात सभी देशों की है.
   
बाजारीकरण के इस दौर में सभी अपने आपको आगे रखना चाहता है और इस कारण से प्रतिस्पर्धा अशांति को जन्म देती है. आर्थिक नीतियों की वजह से अंतराष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धा जोरों पर है. सभी अपना माल अन्य देशों को बेचकर विदेशी पूंजी इकट्ठा कर आर्थिक रूप से सुदृढ़ होना चाहता है.

यही वजह है कि सभी देश दूसरे देशों से संबंधों के मामले में आर्थिक दृष्टि से अपने फायदे के बारे में पहले सोचता है जिसमें एक-दूसरे के प्रति खटास उत्पन्न होने की संभावना हमेशा बनी रहती है. इस संदर्भ में अमेरिका यानि की विकसित देशों की गतिविधियों को समझा जा सकता है.
   
वहीं राजनीतिक दृष्टिकोण से बात करें तो दुनियाभर में लगभग सभी राजनीतिक दल वोट के लिए देश को अशांति और हिंसा के चंगुल में फंसने पर मजबूर करने से भी नहीं हिचकते. जनता को एक-दूसरे से लड़ाकर वोट हासिल करने की परंपरा जोर पकड़ने लगी है, जिसे चुनावों के दौरान उत्पन्न अशांति को हर कोई आसानी से महसूस कर सकता है.
   
प्रत्येक सजीव का जीवन तब सफल माना जाता है जब वह अपनी जिंदगी शांति से गुजार लेता है. लेकिन ऐसा सभी कर सके, यह मुनासिब नहीं ! मानव की एक इच्छा पूरी होती ही दूसरी इच्छा जाग उठती है और इच्छारूपी भूख दिन प्रति दिन बढ़ता ही चला जाता है.

लोगों के जिंदगी को नजदीक से टटोलने पर ज्ञात होता है कि कोई नौकरी के लिए अशांत है तो कोई घर के लिए, कोई पत्नी से परेशान है तो कोई पति से. कोई ससुरालवालों से अशांत है तो कोई मायकेवालों से, आदि-आदि. यथार्थ यह कि हर कोई अपने-अपने स्वार्थ और वर्चस्व को कायम रखने के लिए अशांति और तनाव की तपिश में जल रहा है.
   
विश्व में शांति तभी कायम हो सकेगा जब हम अपनी इच्छाओं को सीमित करना सीखेंगे. वर्तमान में जितना है उससे संतुष्ट होकर अपने कार्यों को करते चले जाना होगा. यानि यह स्पष्ट है कि हिंसा, लालच, स्वार्थ, ईर्ष्या आदि जैसे दूषित भावनाओं के चक्रव्यूह को तोड़कर ही दुनियाभर में शांति को स्थापित किया जा सकता है.

-निर्भय कुमार कर्ण

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