अंधविश्र्वास की दुनिया

आराधना वर्मा
हम 21 वीं सदी में प्रवेश कर आधुनिकता के शिखर पर हैं. हम चांद पर कदम रख चुके हैं, सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण, भूकम्प के राज़ या रहस्य से पर्दा उठा चुके हैं.

हर क्षेत्र में सिध्दि प्राप्त कर उच्च दर्जे की सोच रखने वाले बुध्दजीवियों में शुमार होगाए हैं.
लेकिन आज भी हम कहीं न कहीं अपनी अंधविश्र्वासी मानसिकता के शिकार हैं. आज भी हम खुद को उस मानसिकता से उबार नही पाए या उबरना नही चाहते.

वैसे तो हम बहुत हाइटेक और मॉर्डन होने का दावा करेगें लेकिन
जब बात आती है अंधविश्र्वास की तो सारी सोच पर
पर्दे पड़ जाते हैं.

इस अंधविश्र्वास से जुडी तमाम कहानियां अपने आसपास घुमती मिल ही जाएंगी, जिनपर आप ना चाह कर भी यकीन कर ही लेते हैं .

इस के एक छोटे से उदाहरण का सामना हम अक्सर ही कर लेते हैं. चिट्ठी पत्री के जमाने से आज कम्पूटर, लैपटाप और मोबाइल के जमाने तक इस एक अंधविश्र्वास ने हमारा पीछा नही छोड़ा.

वह है किसी भी भगवान का नाम 101 बार या 700 बार या फिर कोई और संख्या उतनी बार लिख कर उसकी 200 या 500 या फिर कोई और संख्या के बराबर लोगों में बांटो तो आप का काम पूरा होगा या आप को मन चाहा फल मिलेगा.य

दि आप ने ऐसा ना किया तो आप का नुकसान होगा. वगैरह वगैरह...और अब आज कल एसे मेल्स और मैसेज आने लगे हैं, कभी ना कभी आप ने भी जरूर ऐसे किसी ना किसी पत्र, ईमेल या मैसेज का सामना किया होगा.

कुल मिलाके इस अंधविश्र्वास का माध्यम बदला है उसकी तासीर नही. अब भगवान क्या करता है और क्या नहीं, मेरा मुद्दा यह नही है और ना ही इस बारे में मै कोई ज्ञान देने वाली हॅू, उसपर बहुतों ने लिखा और कई फिल्में भी बन चुकी हैं.

मै सिर्फ इतना जानना चाहती हॅू कि क्या वाकई में किसी के साथ ऐसा हुआ है जिस किसी ने ऐसे पत्र, मेल या मैसेज किए हों और उसका काम बन गया हो या वो अपार धन का मालिक बन गया हो, इस तरह के अंधविश्र्वास से ही अगर सभी इच्छाओं की पूर्ति होने लगे तो आज कोई भी मेहनत नही करेगा.

जब आप के पास आप का कोई जानने वाला ऐसे पत्र, मेल या मैसेज भेजता है तो उसे पढ़ कर आप तुरंत आगे भेजने कि जगह उस्से ये क्यो नही पूछते के क्या तुम्हें ऐसा करने से कोई फायदा हुआ या कभी उस इन्सान के बारे में जानने की इच्छा नही हुई जिसने उस पत्र, मेल या मैसेज को पहले भेजा.

आप ने यह सब कभी भी इस लिए नही किया क्योंकि आप के दिमाग में भी कहीं न कहीं ये अंधविश्र्वास घर करके बैठा है. जो आप को डरने पर और इस अंधविश्र्वास को मानने पर मजबूर करता है. लेकिन अगर कभी आप अपने इस डर को किनारे रख कर सोचे और उन पत्र, मेल या मैसेज को पढ़े तो वह किसी न किसी चीज़ का विज्ञापन से ज्यादा और कुछ नही होता.

जैसे कि आजकल बहुत सी सोशल साइट्स अपना प्रमोशन करने के लिए ये बोलती हैं के अगर आप इतने लोगों को ये मैसेज भेजेगें तो आप के मोबाइल में इतना बैलेन्स आ जाएगाऔर आप खुशी-खुशी वह मैसेज फॉरवर्ड कर देते हो, फिर शायद ही आप के मोबाइल में बैलेन्स आता है.

इस अंधविश्र्वास की दुनिया से बाहर निकल कर सच्चाई को देखना और समझना सीखें, वरना इस आधुनिकता का कोइ फायदा नही है.

खुद और अपने आसपास के लोगों को भी इस अंधविश्र्वास से निकलने में मदद करें.

-आराधना वर्मा

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