ये दिल्ली है मेरे यार

पाखी रावत
महिलाओं और बच्चियों के खिलाफ रहे जघन्य अपराधों से आज पूरा देश सकते में है. चारों तरफ बलात्कार की आग है, जिसमें बच्चियों, जवान, यहाँ तक कि बूढ़ी औरतें भी झुलस रही हैं.

किस पल आपके साथ कोई घिनौनी वारदात हो जाए, इसके बारे में आप सोच भी नहीं सकते. समय को देख लगता है कि आज इन्सान इंसानियत भूल हैवानियत पर उतारू हो गया है.

परायी तो परायी अपने घर की महिलाएं तक अपने घर के पुरूषों के साथ सुरक्षित नहीं हैं. एक पिता जब अपनी जन्मी बच्ची की इज्जत के
साथ खेल सकता है तो ऐसे में कौन है, जिसके साथ महिलाएं सुरक्षित महसूस कर सके. आज रिश्ते तार-तार हो रहे हैं.

इन्सान की मानसिकता किस तरह इतनी बदल गई है कि वह इस वहशीपन पर उतर आया कि अपने ही घर की इज्जत तार-तार करने
में उसे कोई शर्म नहीं आती है.

हर आए दिन एक ऐसी झकझोरने वाली घटना सामने आ जाती है, कि सोच के ही रोआं-रोआं काँप उठे- बीते सोलह दिसम्बर की दर्दनाक दास्तान जिसने पूरे देश को सकते में ला दिया और फिर चल पड़ी आन्दोलन की आँधी, तमाम प्रदर्शन हुए.

निर्भया के इन्साफ के लिए लोगों पर लाठी चार्ज हुआ. आँसूं गैस के गोले छोड़े गए. सब कुछ सहते हुए लोगों ने आन्दोलन जारी रखा और अंतत: इसके बाद जब एंटी रेप बिल बना तो लगने लगा था कि अब शायद इन वारदातों में गिरावट आएगी और अपराधियों के दिलों में खौफ पैदा होगा, गलत सोचा था.

यह तब मालूम हुआ जब पहले से और भी खतरनाक घटना की शिकार मात्र पाँच साल की बच्ची हुई. बच्ची के साथ हुए नृशंस बलात्कार ने महिलाओं के दिलों में और डर बैठा दिया.

अक्सर लोगों को कहते सुना है- कि कलयुग है, इन घिनौने अपराधों को देख तो लगता है कि सच में कलयुग ही है और कहीं ना कहीं अपने चरम पर पहुँच रहा है. क्योंकि इतनी बर्बरता इससे ज्यादा कोई हैवान और क्या कर सकता है.

ऐसे घिनौनी वारदात को अन्जाम देने वाले को इन्सान कहना अपराध से कम ना होगा. हमारे समाज में ऐसा बुद्धिजीवी वर्ग भी है जो इस बात को सरलता से हजम नहीं कर पाता कि यदि महिला के साथ कुछ अपराध हुआ है, तो वह निर्दोष ही होगी.

वह यह आलाप करता नजर आता है कि महिलाओं की गलती के बिना उसके साथ बलात्कार या छेड़खानी जैसी घटनाएं कैसे हो सकती हैं. उनकी तरफ से दलीलें कभी छोटे कपड़े, कभी डिस्को, कभी रात को बाहर जाना या खासकर लड़कों से दोस्ती करना- उनकी नजरों में इन सब वारदातों की सिर्फ यही वजह है.

6 दिसम्बर की घटना में भी ऐसे समाज के ऐसे बुद्धिजीवी वर्ग ने घुमा फिरा कर दोष महिला पर ही मढ़ दिया. अब जरा इनसे कोई ये पूछे कि क्या गुडि़या जो कि मात्र पाँच साल की, उसका कुसूर क्या था. क्या उसने भी छोटे कपड़े पहने थे, या वो देर रात बाहर थी, या उसने उस पुरूष से दोस्ती की हुई थी, या उसका कुसूर महज इतना है कि वह घर के बाहर खेल रही थी.

आखिर कौन है कसूरबार? जो गुडि़या के साथ हुआ वह इतना घिनौना था कि शायद ही ऐसा सोच पाए कोई. मासूम बच्ची के शरीर में मोम डाल दिया गया ताकि बलात्कार की पुष्टि ना हो पाए. मात्र पाँच साल की बच्ची ने इतना घिनौना अपराध कैसे सहा, सोच कर ही रोंगटें खड़े हो जाते हैं.

शायद इस सब से वह बच जाती, यदि हमारी दिल्ली पुलिस समय रहते अपना काम करती. पीड़ित परिवार को चुप कराने की बजाय गुनाहगार को पकड़ती. ये तो वो ऐसे मामले हैं जो सामने आते हैं और कहीं ना कहीं पुलिस व प्रशासन पर दबाव बनता है, जिससे उन्हें मजबूरन कार्रवाई करनी पड़ती है.

ऐसे कई मामले हैं, जहाँ ऐसी कितनी निर्भयाएं... गुड़िया हैं, जिन्हें इन्साफ तो देना दूर की बात है, उनके अपराधियों के खिलाफ रिपोर्ट तक दर्ज नहीं की जाती.

एक निर्भया के इन्साफ की लड़ाई के लिए सारा देश एकजुट और निर्भय हो, सड़कों पर उतर आया किन्तु ना जाने कितनी निर्भयाएं हैं, जो डर के साये में अपनी जिन्दगी बसर कर रही हैं.

यही सरकार व पुलिस की बात की जाए तो रटे-रटाये जवाब सुनने को मिलते हैं. यह दुखद है... शर्मनाक है, इसकी जाँच होगी, अपराधियों को सजा मिलेगी ये सब सुन लगता है कि सरकार व पुलिस जनता को बरगला रही है.

दिल्ली के पुलिस कमिश्नर के इस्तीफे की माँग पर उन्होंने पलटवार में जवाब दिया, दूसरे की गलती पर मैं इस्तीफा क्यों दूँ.

क्या रिर्पोटर की गलतियों पर कभी आपके संवादक इस्तीफा देते हैं? अब पुलिस के आला अफसर के इस जवाब से अपनी सुरक्षा का अंदाजा खुद लगाया जा सकता है.

सिर्फ इस वर्ष ही दुष्कर्म के 463 मामले सामने आए हैं. उसके बाद भी कमिश्नर साहब अपने काम से खुश हैं. जैसे गुडि़या के साथ हुए संगीन अपराध को दबाने के लिए दो हजार रूपयों की पेशकश पुलिस द्वारा की जाती है, पीडि़त परिवार वालों को चुप रहने के लिए डराया जाता है.

हमारे देश में हर डेढ़ मिनट में एक बलात्कार होता है. हम उस बदनाम समाज में रह रहे हैं जो अब ना बदला तो गर्त में जाएगा.

3 comments:

Journalist Vikas Thakur said...

good one,,,,

Manish Kumar said...

Good post...
and yes,dress is not responsible for rapes...

Anonymous said...

You are right Pakhi.