अपनी ही पार्टी के निशाने पर स्मृति इरानी

संजय कुमार झा
मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी को जिस तरह दिल्ली विधानसभा चुनाव में घसीटने और मुख्यमंत्री बनाने की बात चलाई गयी, उससे साफ है कि उन्हें भाजपा के ही लोगों से खतरा है.

केंद्रीय विद्यालय संगठन में जर्मन भाषा को लेकर उठा विवाद हो या ज्योतिष को हाथ दिखाने का मामला, पार्टी ने उन्हें अकेला छोड़ दिया.

अपवाद सिर्फ उमा भारती रहीं जिन्होंने जर्मन को इंग्लिश के
स्थान पर पढ़ाने की बात कही. जबकि ज्योतिष से मिलने को को लेकर शिवसेना सांसद को सामने आना पड़ा.

जर्मन भाषा के मामले में मीडिया खासकर इंग्लिश मीडिया चीजों को ऐसे पेश कर रहा है, जैसे कि संस्कृत के कारण जर्मन को प्रतिबंधित किया जा रहा है. जबकि ऐसा नहीं है.

संविधान के मुताबिक केंद्रीय विद्यालय में हिंदी, अंग्रेजी के अलावा किसी एक भारतीय भाषा को पढ़ाया जा सकता है. ऐसे में जर्मन का कोई आधार नहीं बनता.

इसके बावजूद यूपीए सरकार के तत्कालीन मंत्री कपिल सिब्बल ने भारतीय भाषा के स्थान पर जर्मन पढ़ाने का फैसला किया. स्मृति उस गलती को महज ठीक करने का प्रयास कर रही हैं. अतिरिक्त भाषा के रूप में जर्मन पढ़ने का विकल्प मौजूद है. लेकिन सिब्बल के पाले हुए मीडिया के लोग और कुछ भाजपाई इस मामले को हवा दे रहे हैं.
अफसोस की बात है कि पार्टी ने भी स्मृति को अकेला छोड़ दिया.

दरअसल स्मृति ने अपने छोटे से कार्यकाल में ही यह साबित कर दिया कि वो गुंगी गुडि़या नहीं हैं, जिससे जो चाहे करवा लो. संघ और पार्टी की इच्छा थी कि यूजीसी और डीयू जैसे संस्थान में अपने लोगों को लाया जाए. लेकिन सत्ता के पिट्ठू हो चुके माननीयों ने हवा का रुख देख कर झाड़ू थाम लिया.

इसलिए उनके कुछ चाहने वाले स्मृति ईरानी के सफाई अभियान को रोकना चाहते हैं. यही हाल बाकी संस्थानों का भी है. यही कारण है कि स्मृति के अपने लोग ही उन्हें बाहर करवाने पर लगे हैं. चूंकि वह प्रधानमंत्री की पसंद हैं, इसलिए उन्हें सीधे तो हटाना संभव नहीं है. इसलिए जानबूझकर ऐसी हवा बनायी जा रही है कि वह नाकाबिल हैं.
- संजय कुमार झा


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