पाक नहीं चाहता दोस्ताना संबंध -निरंजन मिश्रा

निरंजन मिश्रा
24 अगस्त का दिन मोदी सरकार के लिए एक महत्वपूर्ण दिन है. ठीक 3 महीने पहले जब देश के सभी समाचारपत्र ‘मोदी की ताजपोशी में आएँगे शरीफ’ वाली सुर्खी से सुशोभित हो रहे थे कि, तब सीमा पर शांति चाहने वालो में एक संभावना जगी कि शायद अब भारत-पाक रिश्तों में जमी धुंध छंट सकती है.

भारत-पाक रिश्तों को नजदीक से देखने वालो ने भी ऐसी संभावना व्यक्त की थी, क्योंकि यह किसी पाकिस्तानी आलाधिकारी की पहली भारत
यात्रा थी जिसमें उन्होंने अलगाववादियों के साथ मीटिंग नहीं की.

अपने पाकिस्तानी समकक्ष की माता के सम्मान में दिए गए शॉल की मान तो ‘शरीफ’ जी ने बखूबी रखी जब पाकिस्तानी प्रधानमंत्री की तरफ से नरेन्द्र मोदी की माँ के लिए साड़ी भेजा गया. लेकिन 67 साल बाद बनी एक लोकतान्त्रिक सरकार के मुखिया से भारतीय आवाम जिस प्रत्युतर की प्रतीक्षा में था उसके उलट प्रतिक्रया मिलती दिख रही है.

यह दिन भारत-पाक रिश्तों में एक नया अध्याय जोड़ने का दिन हो सकता था. एक लम्बे अंतराल के बाद दोनों देशो के सचिव स्तर की बैठक के लिए 24 अगस्त का दिन मुक़र्रर किया गया था. पर शायद हमारा पड़ोसी मुल्क यह चाहता ही नहीं कि हमारे बीच के मतभेदों को दूर करने की दिशा में कदम बढाया जा सके.

बीते 18 अगस्त को भारतीय विदेश मंत्रालय में ‘पाक उच्चायुक्त अब्दुल बासित’ और ‘अलगाववादी नेता शब्बीर शाह’ के बीच डेढ़ घंटे चली मुलाकात ने भारत पाकिस्तान के सचिवों के बीच होने वाली वार्तालाप की जड़ में मट्ठा डालने का काम किया.

इस घटना पर भारत के कड़े रुख के बावजूद पाक उच्चायुक्त ने अगले दिन पहले से तय कार्यक्रम के तहत कट्टरपंथी ‘सैय्यद अली शाह गिलानी’ और ‘ऑल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेंस’ के चेयरमैन मीरवाइज’ से भी लम्बी मुलाक़ात की. साथ ही बासित साहब जेकेएलएफ के यासीन मलिक से भी मिले.

शांति वार्ता के तमाम पहल के बावजूद पकिस्तान की तरफ से कोई वाजिब जवाब नहीं मिल पा रहा है.

पकिस्तान भले ही हुर्रियत नेताओं के साथ अपनी बातचीत को पारंपरिक ठहराए लेकिन हकीकत यही है कि इस्लामाबाद यह चाहता ही नहीं कि भारत से रिश्ते दोस्ताना बने. सीमा पार से की जा रही असहनीय गतिविधियां इस बात का
प्रमाण है. केवल अगस्त के महीने में पाकिस्तानी सैनिकों की ओर से 20 बार सीजफायर का उल्लंघन किया जा चुका है. हद तो तब हो गई जब पिछले शुक्रवार की रात सीमा पार से जम्मू सेक्टर में अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर 22 सीमा
चौकियों और 13 गांवों में बिना किसी उकसावे के भीषण गोलीबारी की गई जिसमे 2 नागरिक मारे गए और बीएसएफ के एक जवान सहित 6 लोग घायल हो गए.

हाल ही में भारत-पाक सीमा से लगी अग्रिम चौकी के पास करीब 50 मीटर लम्बी एक सुरंग का पता लगा है जो पाकिस्तानी मंसूबों को जाहिर करने के लिए काफी है. इन सब के बीच पकिस्तान की ओर से डीजीएमओ बैठक का संकेत मिला है. जिसका वर्तमान घटनाक्रम के बीच कोइ औचित्य ही नहीं है क्योंकि इधर बातचीत का संकेत दिया जा रहा है और उधर सीजफायर उल्लंघन की आड़ में आतंकी घुसपैठ को बढ़ावा दिया जा रहा है.

उतरी कश्मीर के कुपवाड़ा जिले के केरन सेक्टर में आतंकवादियों और भारतीय सेना के बीच हुई मुठभेड़ में भारतीय सेना का एक जवान शहीद हो गया.

आखिर कब तक हमारे सैनिक सीमा पार की इस नापाक हरकत का शिकार होते रहेंगे? हमारे हुक्मरानों को इस समस्या का स्थायी हल ढूंढना ही होगा. युद्ध इसका समाधान नहीं हो सकता है क्योंकि आजादी के बाद से अब तक भारत पकिस्तान के बीच 1948, 1965, 1971, और 1999 में चार जंग लड़े जा चुके हैं और चारों में पकिस्तान ने मुंह की खाई है. बावजूद इसके वह भारत को हमेशा उकसाता रहता है.

हमारे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने उस नापाक पाक के लिए सच ही कहा है,
‘’...पर तुम क्या जानो आजादी क्या होती है ?
तुम्हे मुफ्त में मिली ना कीमत गई चुकाई,
अंग्रेजो के बल पर दो टुकड़े पाए हैं,
माँ को खंडित करते तुमको लाज ना आई .’’